स्वाभिमानी मीना आदिवासी

उन्नीसवीँ सदी मे इस आदिवासी समुदाय ने रियासती शासको और उनके आके ब्रिटिश शासको के लिए एक विकट चुनौती पेश की । इस समुदाय की छापामार युध्द निति, दिलेरी बहादूरी असाधारण कार्य करके नाम कमाने की प्रवृति बहुत बढ़ गई थी । इनको दबाने के लिए अंग्रेजो को सुपरिन्टेन्डन्ट ऑफ मीणा डिस्ट्रिक्ट बनाना पड़ा,नसीराबाद छावनी, मेरवाड़ा मे मेर बटालियन, खैराड़, मेवाड़, बागड़ एवं गोड़वाड़ के मीणोँ को दबाने के लिये अंग्रेजो को क्रमशः देवली, खेरवाड़ा,कोटड़ा, नीमच,ऐरिनपुरा और शिवगंज मे विशेष छावनियां स्थापित करनी पड़ी । यह समुदाय अंग्रेजो को बाहर निकालने का पक्षधर था दुर्भाग्य यह रहा कि स्थानीय शासकों ने इनकी सहायता करने के बजाय इनका दमन किया । मारवाड़ के गौड़वाड़ मे मीणा अपनी प्रतिकात्मक स्वतंत्र सत्ता कायम कर रखी थी अपने परगने और उनके स्वतंत्र सरदार या प्रमुख बना रखे थे । कर्नल जेम्स टॉड ने इस क्षेत्र के मीणों की वीरता और जीवन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है । उसने इस क्षेत्र को रोमांचक गाथाओ का विपुल भंडार बताया है ऐसी ही गाथा मुझे मारवाड़ दौरे के दौरान मिली । वो इस प्रकार है एक दिन दो व्यक्ति पिता और पुत्र शिवगंज छावनी के पास से निकल रहे थे एक अंग्रेज दिखाई दिया पूत्र ने अभिवादन करना चाहा पिता ने रोक दिया बाद मे बेटे को समझाया ये अत्याचारी और अन्याय करने वाले लोग है मीणो की परम्परा ऐसे लोगो के आगे झुकने की नही संघर्ष की है वह युवक खिवान्दी(पाली) के मुखिया के पुत्र देवा जी जावतरा(सिहरा) थे ।अपने समुदाय व अपने पूर्वजो से विरासत मेँ मिले संस्कारो ने आगे चलकर देवा सीहरा को ऐसा सुदृढ़ व्यक्तित्व प्रदान किया जिसके सामने जोधपुर व सिरोही नरेश व अंग्रेज भयभीत रहते थे ।प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय बीस बाईस के थे । वे अपने जनसेवा,वीरता और साहस से बहुत लोकप्रिय थे । देवा जी कई जागीरदारो और सामन्तो से चौथ व बोलवा कर लिया करते थे देवतरा के राठौड़ ठाकूर अनार सिँह ने देवा को बोलवा कर नही दिया देवा इसे अपमान माना । मेदा सिहरा जिसने दुल्हाराय कच्छावा और उसकी सेना को रोन्ध दिया था,अजमत सिहरा जिसने अल्लाउद्दी खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण के समय बनास नदी के किनारे 20 हजार सेना लेकर नाको चने चबवाये उस वंश के देवा सिहरा देवतरा के ठाकूर अनार सिँह द्वारा अपने स्वाभिमान व अधिकार को चोट पहुचाने के अपमान को कैसे सहन कर सकते थे ठाकूर को उसके गढ़ मे जाकर ललकारा देवा को गिरफ्तार के लिए सैनिक दस्ता को आदेश दिया देवा ने युध्द मे उनको मौत के घाट उतार दिया इसके बाद देवा जी ने अपना मजबूत द्रगड़ा (सैनिक दस्ता) बनाया एक द्रगड़ा मे 50 सैनिक होते थे ऐसे 10 द्रागड़े थे अर्थात 500 सैनिक हमेशा साथ रहते थे धीरे धीरे द्रागड़े बढ़ते गये इनके मेवासे पहाड़ोँ की घाटी मेँ दुर्गम स्थल पर होते थे । इस घटना की सूचना जोधपुर नरेश तक पहुची तो देवा जी को पकड़ने और दमन के लिए एक सैनिक टूकड़ी भेजी गई । पर तनिक भी सफलता नही मिली देवा जी सीहरा एक परगने के मुखिया थे ऐसे 13 परगने थे मारवाड़ मे मीणा आदिवासियो के वे एक मजबुत संगठन मे बन्धे थे दुश्मनो से सामुहिक से लड़ते थे सभी परगना प्रमुखो का एकत्रित होने का स्थल गोतमेश्वर महादेव था जहां साल मे एक बार एकत्रित होते थे जहां रियासती सेनाओ की जानी की हिम्मत न थी आज भी वहाँ पुलिस का प्रवेश वर्जित है । अनेकानेक प्रयास के बावजुद जोधपुर नरेश असफल रहे देवा जी पुत्री ओबू बाई के विवाह की सूचना पर जोधपुर नरेश ने सैनिक टूकड़ी भेजी पर देवा जी के सामने नही टिक पाये । उनके मित्र सादल जी ने भरपूर मदद की शादी सम्मन्न के बाद एक बार फिर देवा सिहरा का मुकाबला अंग्रेज व जोधपुर सेना से हुआ उस युध्द मे बलिदान हो गये । वे अपने समाज और जनता के शोषण के खिलाफ लड़ते रहे कई बार अंग्रेजो व रियासती सामन्त को लुटा और धन जनता मे बाटा अत्याचारो के सामने झुके नही । देवा जी की बहादूरी और दिलेरी की बहुत सी गाथाये आज भी मारवाड़ मे सुनने को मिलती है वे विदेशी शासन व सामन्तवाद के कट्टर शत्रु थे उनकी शौर्य पूर्ण गाथायें आदिवासी लोकगीतों मे मिलती है परन्तु क्रमबध्द वृतान्त उपलब्ध नहीँ है देवा जी मीणा के नाम पर आज भी उनके वंशज गौरवान्वित समझते है |
इस आलेख पर आपके दो शब्द हमारे लिए आशीर्वाद और उर्जा होगी - पी एन बैफलावत

Post a Comment

0 Comments