मीना इतिहास - कुछ भ्रान्तियां..
किसी जागा का एक भ्रान्तिमूलक दोहा है जिसकी वजह से ढपोर शंख जैसी विकृतियां पैदा हुई, क्योंकि अब तक हम मे सिर्फ जिसने जो कह दिया उसे मानने की मानसिक गुलामी की प्रथा ही हावी रही है? वो दोहा करीब 19 वीं शताब्दी मे लिखा गया है..बहुत से विद्वानो ने इसे ही आधार बनाकर इसका अर्थ का अनर्थ किया है ,इसमे ध्वज अर्थात टोटम लिखा है जो सिन्धु सभ्यता के समय से बहुत सी आदिवासी जातियो मे प्रधान रहा है जबकि अवतारवाद का सिद्धान्त उत्तर वैदिक काल या बुद्ध काल की देन है जब एक धर्म विशेष समाप्त प्राय् हो गया था । हमारे कुछ लोगो को इसी के आधार पर तथाकथित इतिहासकारो ने बहकाकर मत्स्य अवतार से जोडने का कुत्सित पयास किया ..इस दोहे को अलग अलग पुस्तको मे इतिहासकारो ने अपने हिसाब से तोडा मरोडा और येन केन प्रकारेण इसे मिथकीय अवधारणा से जोडने का प्रयास किया गया था जैसा कि आप विभिन्न इतिहासकारारो की मीना इतिहास पर पुस्तक पढेगे...इसी तरह के अन्य कई दोहे और मिथकीय श्लोक और भी है जिनसे इन लेखको ने इतिहास लिखने के बजाय ये कोशिस की है कि इन्हे जैसे भी हो प्रचलित अवतारवाद से जोडा जाए ...यहीं हम और हमारे अब तक के इतिहासकार गलती कर गये जिसकी सजा शनै शनै प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप में हम देख रहें है।
यह है वह दोहा जिसका अर्थ का अनर्थ या मीन ध्वज को मीनेस या कुछ अन्य समझ लिया....जबकि यह सीधे सीधे प्राचीन टोटेमवादी थ्योरी के अनुसार प्रत्येक गण या कबीले का एक प्रतीक चिन्ह जो प्रकृति से सम्बन्धित कोई भी अवयव हो , होता था ...जैसा कि मीनाओ का मत्स्य ध्वज था ...
बारह पाल बत्तीस थड,बावन शत है गोत।
वंश मीन ध्वज में बसे, राजकुली मीनोत।।
इस विषय पर रावेण कंकाली जो कि पूना विवि मे प्रोफेसर थे और पहली बार उन्होने सिन्धु सभ्यता की लिपि पढी , उसमे ये तथ्य उजागर हुआ है कि मीना ,भील , गोंड सहि्त 7 कबीले सिधु सभ्यता मे थे जिन्होने अन्तराष्ट्रीय स्तर के व्यापारिक सम्बन्ध बनाए और आज की शहरी व्यवस्था से भी उपर उन्होने अपने प्रतिमान गढे । जिनके अवशेष सिन्धु सभ्यता मे मिले है।
उस पुस्तक मे गोत्र व्यवस्था का विधान या एक मोहर मिली है जिसमे प्हले 5 गोत्र के उपर एक गणमा्न्य व्यक्तित होता था ,्जिसे बाद मे लोक देवता /देवी की संज्ञा दी गई, उसकी ड्युटी थी इन पांच गोत्रो मे विवाह सम्बन्ध नही होने चाहिये क्योंकि वे रक्त के हिसाब से एक जैसे थे,,जिसे वर्तमान विज्ञान ने भी माना है। वे पांचो गोत्र बचाये जाते थे ..आज तक मीना जाति मे गोत्र बचाने की प्रथा मौजूद है हालांकि अब ये 3 गोत्र पर है।
सिन्धु सभ्यता के समय तीन भाषाए भी प्रचलन में थी यथा गोंडी, मीनी भाषा और भीली । मीनी और भीली कालान्तर मे आर्यो के सम्पर्क मे आने के कारण नष्ट हो गई परन्तु वर्त्मान में गोंडी भाषा आज तक जीवित है ।इसी के माध्यम से डा कंकाली ने सिन्धु लिपि पढने मे सफलता हासिल की है।
कुछ इतिहासकार मित्र या छात्र हो तो इस पर अवश्य विचार करें कि कैसे येन केन प्रकारेण आपको काल्पनिक वाद और धाराओं मे फंसाया गया है? केवल जागाओ के दोहो या किवदंतैयो/मिथको में ही इतिहास न ढूढे ...ये भी अब सफल व्यवसायिक हो गये है? अब जरुरत है अपने अस्तित्व के लिए शोध की द।उदर पूर्ति तो वे भी कर रहे है जिन्हे कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली , फिर आप क्युं सिर्फ न्युक्लियर फैमिली के दास बन गये? इतिहास से पहले पढे लिखे लोग इस पर भी सोचे ? अत हम सबका दायित्व है कि अपने इतिहास और संस्कृति के शोध पर भी सोचे।
सिन्धु सभ्यता के बाद लिखे ग्रन्थो मे गोत्र प्रथा वही से टीपी गई है / आयुर्वेद विशुध रुप से आदिवासियो या वनवासियो की देन है जिसे कई परवर्ती लोगो ने अपने नाम से लिपिबद्ध करके बहुत सी संहिता के रुप मे ढाल दिया होगा क्योंकि उस समय आदिवासी श्रुत ज्ञान पर ही ये सारा विज्ञान आगे बढाते थे , उन्होंने कभी इसे लिपिबद्ध नहीं किया जिसका फायदा अन्य लोगो ने उठा लिया।?...
( चित्र साभार श्रीराम मीना भाई --- आदिवासी मीना किसान दम्पत्ति की नैसर्गिक हंसी । बाजरा तैयार करके घर पहुंचने के बाद किसान को जो संतोष उत्पन्न हुआ उसी का परिणाम ये नैसर्गिक हंसी कि चलो ये सम्वत तो हाथ आया । श्रम साध्य मीना आदिवासी जाति का ये आदिकाल से ही गुण रहा है ।)
विशेष टिप्पणी-- जागाओ से उन ग्रन्थो को लेने की कोशिश करिये जिनको उन्होने अधिकांश रुप मे एक विचारधारा के चक्कर मे जमा करवा दिये ..)
इन्हे गांव मे बुलाने से पहले ये पूछे कि पुरानी पोथी है या नही? या किसी भवन मे जमा करवा दी? भवन का मतलब वे लोग समझ जाएगे जो सजग है। साथ ही हमारे समाज के उन नवोदित छात्रो से भी अनुरोध है कि वे अपना शोध उन पर न करें जिन पर लाखो लाख पी एच डी हो चुकी है बल्कि अपने खुद के इतिहास और संस्कृति पर करें तो आपके पढने लिखने का समाज को भी फायदा मिलेगा ।
जो भी सजग मित्र है कृपया अपनी टिप्पणी ऐसी दे जो विषय को आगे बढाये , मंथन करे ताकि विषय को विस्तार मिले ।
(विजय सिंह मीना)
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